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"पाँवलिया / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
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मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से | मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से | ||
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मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल | मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल | ||
निशी दिन मेरे विपिनो में उडते रहते । | निशी दिन मेरे विपिनो में उडते रहते । | ||
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21:58, 23 जनवरी 2011 का अवतरण
मेरे गृह से सुन पडती गिरि-वन से आती
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से
खुली खिड़कियों से हिमगिरि के शिखर मनोहर,
उड़-उड़ आती क्षण- क्षण शीत तुषार हवाएँ,
मेरे आँगन छू बादल हँसते गर्जन कर,
झरती वर्षा, आ बसंत कोमल फूलों से,
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
निशी दिन मेरे विपिनो में उडते रहते ।
कोलाहल से दूर शांत