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शिरसि जटाजूटं विभ्रत् कौपीनंघृतवान् ।
भस्माशेषै वपुषिदधानों हरिचयर्रांबरवान् ।।
तृष्णामुक्तः स्वैर बिहारी योगकला विद्वान ।
अलख निरंजन जपता योगी ओन्नमोनारान् ।।