"फ़रवरी / बरीस पास्तेरनाक" के अवतरणों में अंतर
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14:57, 24 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
ओ असित वसंत, लेखनी लो और रोते हुए लिखो
कविताएँ फ़रवरी मास पर सिसकियों और स्याही से
जबकि वसंत की कालिमा में
जलती-सी दीखती होगी कीचड़, बिजली की चमक में ।
पहियों के काँय-किच और चर्च की बजती घंटियों से होकर
ले जाएगी भाड़े की एक गाड़ी तुम्हें वहाँ
जहाँ शहर की सीमा समाप्त होती है और जहाँ वर्षा की बौछार
सुनी जा सकती है अधिक साफ़, स्याही और आँसुओं से ।
जहाँ झुलसी नासपातियों की तरह हज़ारों घोंसले
शाखाओं से विलग हो बहते होंगे पिघलते हिम में
बूँद-बूँद भरते हुए
शुष्क अवसाद रुदित आँखों में ।
नीचे, जहाँ धरती दीखती होगी काली, गँदली खाइयों में,
हवा काँपती होगी अनवरत चीख़ के साथ वहाँ
और जितने ही आकस्मिक रूप से चीख़ती होगी हवा
उतनी ही दृढ़ होकर सिसकियों में से जन्म ले रही होंगी कविताएँ ।
अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह