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13:15, 26 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

धरती की तरह फैली थी वह
पर उसे पहाड़ की तरह दिखना था
मटमैले शरीर पर बादल का वस्त्र पहने
जल के स्रोत से वह निनाद की तरह थी
पुरुषों की भाषा को जगह-जगह तोड़कर
अपने व्याकरण में वह निर्द्वंद्व विचर रही थी

पुरुषों की भाषा में यह भय की शुरुआत थी