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14:00, 26 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

क़लम उठाकर उसने पहला शब्द लिखा
जीवन

तपते पठार थे झाड़ियाँ थीं
था कुम्हलाया हरा-सा रंग

चीड़ के पत्तों पर पहाड़ों की उदासी
बर्फ़ की तरह रुकी थी
उसमें डोल रहे थे चमकीली सुबह के उदग्र छौने

नदियों के जल में बसी हवा पीने चला आया था सूरज
मछलियों के गलफ़ड़े में बचा था फिर भी जीवन

असफलताओं के बीच यह अन्तिम विश्वास की तरह था ।