भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झील का किनारा / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय }} {{KKCatKavita}}…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:12, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण
झील का निर्जन किनारा
और वह सहसा छाए सन्नाटे का
एक क्षण हमारा ।
वैसा सूर्यास्त फिर नहीं दिखा
वैसी क्षितिज पर सहमी-सी बिजली
वैसी कोई उत्ताल लहर और नहीं आई
न वैसी मदिर बयार कभी चली ।
वैसी कोई शक्ति अकल्पित और अयाचित
फिर हम पर नहीं छाई ।
वैसा कुछ और छली काल ने
हमारे सटे हुए लिलारों पर नहीं लिखा ।
वैसा अभिसंचित, अभिमंत्रित,
सघनतम संगोपन कल्पान्त
दूसरा हमने नहीं जिया ।
वैसी शीतल अनल-शिखा
न फिर जली, न चिर-काल पली,
न हमसे सँभली ।
या कि अपने को उतना वैसा
हमीं ने दुबारा फिर नहीं दिया ?