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"पलकों का कँपना / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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18:27, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण

तुम्हारी पलकों का कँपना ।
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।
मानो दीखा तुम्हें लजीली किसी कली के
खिलने का सपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

सपने की एक किरण मुझ को दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना ।
और सब समय पराया है ।
बस उतना क्षण अपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।