भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँस का पुतला / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय }} {{KKCatKavita}}…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:32, 3 फ़रवरी 2011 का अवतरण
वासना को बाँधने को
तूमड़ी जो स्वर-तार बिछाती है-
आह! उसी में कैसी एकांत निविड़
वासना थरथराती है !
तभी तो साँप की कुण्डली हिलती नहीं-
फन डोलता है ।
कभी रात मुझे घेरती है,
कभी मैं दिन को टेरता हूँ,
कभी एक प्रभा मुझे हेरती है,
कभी मैं प्रकाश-कण बिखेरता हूँ।
कैसे पहचानूँ कब प्राण-स्वर मुखर है,
कब मन बोलता है ?
साँस का पुतला हूँ मैं :
जरा से बँधा हूँ और
मरण को दे दिया गया हूँ :
पर एक जो प्यार है न, उसी के द्वारा
जीवनमुक्त मैं किया गया हूँ ।
काल की दुर्वह गदा को एक
कौतुक-भरा बाल क्षन तोलता है !