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17:25, 3 फ़रवरी 2011 का अवतरण

मैं कवि हूँ
दृष्टा, उन्मेष्टा,
संधाता,
अर्थवाह,
मैं कृतव्यय ।

मैं सच लिखता हूँ :
लिख-लिख कर सब
झूठा करता जाता हूँ ।

        तू काव्य :
       सदा-वेष्टित यथार्थ
        चिर-तनित,
       भारहीन, गुरु,
       अव्यय ।

        तू छलता है
        पर हर छल में
        तू और विशद, अभ्रान्त,
       अनूठा होता जाता है ।