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मैं कवि हूँ
दृष्टा, उन्मेष्टा,
संधाता,
अर्थवाह,
मैं कृतव्यय ।
मैं सच लिखता हूँ :
लिख-लिख कर सब
झूठा करता जाता हूँ ।
तू काव्य :
सदा-वेष्टित यथार्थ
चिर-तनित,
भारहीन, गुरु,
अव्यय ।
तू छलता है
पर हर छल में
तू और विशद, अभ्रान्त,
अनूठा होता जाता है ।