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19:55, 3 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

अकेली और अकेली ।
प्रियतम धीर, समुद सब सहने वाला;
मनचली सहेली ।

अकेला :
वह तेजोमय है जहाँ,
दीठ बेबस झुक जाती है;
वाणी तो क्या, सन्नाटे तक की गूँज
वहाँ चुक जाती है ।
शीतलता उस की एक छुअन-भर से
सारे रोमांच शिलित कर देती है,
मन के द्रुत रथ की अविश्रान्त गति
कभी नहीं उस का पदनख तक परिक्रान्त कर पाती है ।
वह
इस लिए
अकेला ।

अकेली :
जो कहना है, वह भाषा नहीं माँगता ।
इस लिए किसी को साक्षी नहीं माँगता,
जो सुनना है, वह जहाँ झरेगा तेज-भस्म कर डालेगा-
तब कैसे कोई उसे झेलने के हित पर से साझा पालेगा ?
वह
इस लिए निरस्र, निर्वसन, निस्साधन, निरीह,
इस लिए
अकेली ।