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"ईश्वर का सच / राकेश रोहित" के अवतरणों में अंतर
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01:31, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
मैं समझता हूँ ईश्वर का सच
दुहराई गई कथाओं से सराबोर है
और जो बार-बार चमकता है
आत्मा में ईश्वर
वह केवल आत्मा का होना है ।
जीवन के सबसे बेहतर क्षणों में
जब भार नहीं लगता
जीवन का दिन-दिन
और स्वप्नों को डँसती नहीं
अधूरी कामनाएँ
तब भी मेरा स्वीकार
आरंभ होता है वैदिक संशय से
अगर अस्तित्वमान है ईश्वर
धरती पर देह धारण कर....
मैं समझता हूँ
सृष्टि की तमाम अँधेरी घाटियों में
केवल
सूनी सभ्यताओं की लकीरें हैं
कि जहाँ नहीं जाती कविता
वहाँ कोई नहीं जाता.
सारी प्रार्थनाओं से केवल
आलोकित होते हैं शब्द
कि ईश्वर का सच
ईश्वर को याद कर ईश्वर हो जाना है ।