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− | + | सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना । | |
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− | + | एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर | |
− | + | कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर | |
− | + | ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल .... | |
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− | + | हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान | |
− | + | आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान | |
− | + | सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल.... | |
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− | + | कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई | |
− | + | भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई | |
+ | बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल.... | ||
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02:44, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरिया रचनाकार: रसूल |
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना । एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल .... हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल.... कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....