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"बड़ी होती बेटी / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर

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अभी पिछले फागुन में  
 
अभी पिछले फागुन में  
 
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उसकी आँखों में कोई रंग न था  
उसकी आंखों में कोई रंग न था  
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पिछले सावन में  
 
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उसके गीतों में करुणा न थी  
 
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अचानक बड़ी हो गई है बेटी  
अचानक बड़ी हो गयी है बेटी  
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सेमल के पेड़ की तरह  
 
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हहा कर बड़ी हो गई है  
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देखते ही देखते।  
 
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जब वह जन्मी थी  
 
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तब कितना पानी होता था  
 
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कुएँ-तालाब में  
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नदी तो हरदम लबालब भरी रहती थी  
 
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भादों में कैसी झड़ी लगती थी  
 
भादों में कैसी झड़ी लगती थी  
 
 
वैसी ही एक रात में पैदा हुई थी  
 
वैसी ही एक रात में पैदा हुई थी  
 
 
ऐसी झपासी थी कि एक पल के लिए भी  
 
ऐसी झपासी थी कि एक पल के लिए भी  
 
 
लड़ी नहीं टूट रही थी  
 
लड़ी नहीं टूट रही थी  
 
 
 
  
 
अब बड़ी हुई बेटी  
 
अब बड़ी हुई बेटी  
 
 
तब तक सूख चुके हैं सारे तालाब  
 
तब तक सूख चुके हैं सारे तालाब  
 
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गहरे तल में चला गया है कुएँ का पानी  
गहरे तल में चला गया है कुएं का पानी  
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नदी हो गई है बेगानी  
 
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काँस और सरकंडों के जंगल में  
नदी हो गयी है बेगानी  
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कहीं-कहीं बहती दिखती हैं पतली पतली धाराएँ ।
 
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कांस और सरकंडों के जंगल में  
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पलकें झुका कर  
 
पलकें झुका कर  
 
 
सपनों को छोटा करो मेरी बेटी  
 
सपनों को छोटा करो मेरी बेटी  
 
 
नींद को छोटा करो  
 
नींद को छोटा करो  
 
 
देर से सूतो  
 
देर से सूतो  
 
 
पर देर तक न सूतो  
 
पर देर तक न सूतो  
 
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होठों से बाहर न आये हँसी
होठों से बाहर न आये हंसी
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आँखों तक पहुंच न पाये कोई ख़ुशी
 
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आंखों तक पहुंच न पाये कोई खुशी
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कलेजे में दबा रहे दुःख  
 
कलेजे में दबा रहे दुःख  
 
 
भूख और विचारों को मारना सीखो  
 
भूख और विचारों को मारना सीखो  
 
 
अपने को अपने ही भीतर गाड़ना सीखो  
 
अपने को अपने ही भीतर गाड़ना सीखो  
  
 
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कोमल-कोमल शब्दों में  
 
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कोमल कोमल शब्दों में  
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जारी होती रहीं क्रूर हिदायतें  
 
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फिर भी बड़ी हो गई बेटी  
फिर भी बड़ी हो गयी बेटी  
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बड़े हो गये उसके सपने!  
 
बड़े हो गये उसके सपने!  
  
 
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बड़ी हो रही है बेटी  
 
बड़ी हो रही है बेटी  
 
 
बड़ा हो रहा है उसका एकांत  
 
बड़ा हो रहा है उसका एकांत  
 
 
 
  
 
वह चाहती है अब भी  
 
वह चाहती है अब भी  
 
 
चिड़ियों से बतियाना  
 
चिड़ियों से बतियाना  
 
 
फूलों से उलझना  
 
फूलों से उलझना  
 
 
पेड़ों से पीठ टिका कर सुस्ताना  
 
पेड़ों से पीठ टिका कर सुस्ताना  
 
 
पर सब कुछ बदल चुका है मानो  
 
पर सब कुछ बदल चुका है मानो  
 
 
 
  
 
कम होने लगी है  
 
कम होने लगी है  
 
 
चिड़ियों के कलरव की मिठास  
 
चिड़ियों के कलरव की मिठास  
 
 
चुभने लगे हैं  
 
चुभने लगे हैं  
 
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फूलों के तेज़ रंग  
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डराने लगी हैं  
 
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दरख़्तों की काली छायाएँ
दरख्तों की काली छायाएं
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बड़ी हो रही है बेटी  
 
बड़ी हो रही है बेटी  
 
 
बड़े हो रहे हैं भेड़िए  
 
बड़े हो रहे हैं भेड़िए  
 
 
बड़े हो रहे है सियार  
 
बड़े हो रहे है सियार  
  
 
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माँ की करुणा के भीतर  
 
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मां की करुणा के भीतर  
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फूट रही है बेचैनी  
 
फूट रही है बेचैनी  
 
 
पिता की चट्टानी छाती में  
 
पिता की चट्टानी छाती में  
 
 
दिखने लगे हैं दरकने के निशान  
 
दिखने लगे हैं दरकने के निशान  
 
 
बड़ी हो रही है बेटी!  
 
बड़ी हो रही है बेटी!  
  
 
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बाबा बाबा  
 
बाबा बाबा  
 
 
मुझे मकई के झौंरे की तरह  
 
मुझे मकई के झौंरे की तरह  
 
 
मरुए में लटका दो  
 
मरुए में लटका दो  
 
 
 
  
 
बाबा बाबा  
 
बाबा बाबा  
 
 
मुझे लाल चावल की तरह  
 
मुझे लाल चावल की तरह  
 
 
कोठी में लुका दो  
 
कोठी में लुका दो  
 
 
 
  
 
बाबा बाबा  
 
बाबा बाबा  
 
 
मुझे माई के ढोलने की तरह  
 
मुझे माई के ढोलने की तरह  
 
 
कठही संदूक में छुपा दो  
 
कठही संदूक में छुपा दो  
 
 
 
  
 
मकई के दानों को बचाता है छिलकोइया  
 
मकई के दानों को बचाता है छिलकोइया  
 
 
चावल को कन और भूसी  
 
चावल को कन और भूसी  
 
 
ढोलने को बचाता है रेशम का तागा  
 
ढोलने को बचाता है रेशम का तागा  
 
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तुझे कौन बचाएगा मेरी बेटी!
तुझे कौन बचायेगा मेरी बेटी!
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</poem>

20:30, 7 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

अभी पिछले फागुन में
उसकी आँखों में कोई रंग न था
पिछले सावन में
उसके गीतों में करुणा न थी
अचानक बड़ी हो गई है बेटी
सेमल के पेड़ की तरह
हहा कर बड़ी हो गई है
देखते ही देखते।

जब वह जन्मी थी
तब कितना पानी होता था
कुएँ-तालाब में
नदी तो हरदम लबालब भरी रहती थी
भादों में कैसी झड़ी लगती थी
वैसी ही एक रात में पैदा हुई थी
ऐसी झपासी थी कि एक पल के लिए भी
लड़ी नहीं टूट रही थी

अब बड़ी हुई बेटी
तब तक सूख चुके हैं सारे तालाब
गहरे तल में चला गया है कुएँ का पानी
नदी हो गई है बेगानी
काँस और सरकंडों के जंगल में
कहीं-कहीं बहती दिखती हैं पतली पतली धाराएँ ।

पलकें झुका कर
सपनों को छोटा करो मेरी बेटी
नींद को छोटा करो
देर से सूतो
पर देर तक न सूतो
होठों से बाहर न आये हँसी
आँखों तक पहुंच न पाये कोई ख़ुशी
कलेजे में दबा रहे दुःख
भूख और विचारों को मारना सीखो
अपने को अपने ही भीतर गाड़ना सीखो

कोमल-कोमल शब्दों में
जारी होती रहीं क्रूर हिदायतें
फिर भी बड़ी हो गई बेटी
बड़े हो गये उसके सपने!

2

बड़ी हो रही है बेटी
बड़ा हो रहा है उसका एकांत

वह चाहती है अब भी
चिड़ियों से बतियाना
फूलों से उलझना
पेड़ों से पीठ टिका कर सुस्ताना
पर सब कुछ बदल चुका है मानो

कम होने लगी है
चिड़ियों के कलरव की मिठास
चुभने लगे हैं
फूलों के तेज़ रंग
डराने लगी हैं
दरख़्तों की काली छायाएँ

बड़ी हो रही है बेटी
बड़े हो रहे हैं भेड़िए
बड़े हो रहे है सियार

माँ की करुणा के भीतर
फूट रही है बेचैनी
पिता की चट्टानी छाती में
दिखने लगे हैं दरकने के निशान
बड़ी हो रही है बेटी!

3

बाबा बाबा
मुझे मकई के झौंरे की तरह
मरुए में लटका दो

बाबा बाबा
मुझे लाल चावल की तरह
कोठी में लुका दो

बाबा बाबा
मुझे माई के ढोलने की तरह
कठही संदूक में छुपा दो

मकई के दानों को बचाता है छिलकोइया
चावल को कन और भूसी
ढोलने को बचाता है रेशम का तागा
तुझे कौन बचाएगा मेरी बेटी!