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"तुम / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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तुम इतनी क्रूर होंगी
 
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जानता न था
 
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आक्रोश से भरपूर होंगी
 
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मन मानता कहाँ था
 
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मुझे  देख
 
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गर्दन घुमाकर चला गईं तुम
 
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कपाट पर
 
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साँकल चढ़ाकर  चली गईं तुम
 
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और मैं चकित खड़ा था
 
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तुम्हारे दरवाज़े पर
 
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अवशिष्ट-सा थकित पड़ा था
 
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तुम्हारे दरवाज़े पर
  
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12:47, 8 फ़रवरी 2011 का अवतरण

तुम इतनी क्रूर होंगी
जानता न था
आक्रोश से भरपूर होंगी
मन मानता कहाँ था
मुझे देख
गर्दन घुमाकर चला गईं तुम
कपाट पर
साँकल चढ़ाकर चली गईं तुम

और मैं चकित खड़ा था
तुम्हारे दरवाज़े पर
अवशिष्ट-सा थकित पड़ा था
तुम्हारे दरवाज़े पर

2000