भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नेह भीगे पत्र / रमेश चंद्र पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश चंद्र पंत }} {{KKCatNavgeet}} <poem> फूल जो हमने क़िताबों …)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:32, 11 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

फूल जो हमने क़िताबों में
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !

नर्म-कोमल
दूब पर हमने लिखे जो
नेह के अक्षर
ढूँढ़ने होंगे
वही फिर गंध अब भी
घाट के पत्थर
इंद्रधनुषी स्वप्न जो हमने
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !

दूधिया रातें
अकेले बैठ चुपचुप
गुनगुना उठना
याद कर जैसे
कहीं-कुछ मन ही मन में
खिलखिला उठना

नेह-भीगे पत्र जो हमने
सहेजे थे-
बहुत ही याद आए
नहीं तुम पास आए !