भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झंकार / अक्कितम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्कितम |संग्रह=अक्कितम की प्रतिनिधि कविताएँ / …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:35, 12 फ़रवरी 2011 का अवतरण
बाँबी की शुष्क मिट्टी के
अन्तः अश्रुओं के सिंचन से
पहली बार विकसे पुष्प!
मानव वंश की सुषुम्ना के छोर पर
आनन्द रूपी पुष्पित पुष्प!
हजारों नुकीली पंखुड़ियों से युक्त हो
दस हजार वर्षों से सुसज्जित पुष्प!
आत्मा को सदा
चिर युवा बनाने वाले
विवेक का अमृत देने वाले पुष्प!
सुश्वेत कमल पुष्प!
तू निरन्तर सौरभ का कर संचार
मैं इसे ग्रहण कर उनींदे मन से
प्रज्ञा की पलकें खोल रहा हूँ
मैं दीनानुकम्पा में वाष्पित हो
गीत की तरह हवा में तैर रहा हूँ
मैं सोमरस व सामवेद पर विजय प्राप्त करती
एक लय - रोमांच बनकर उभर रहा हूँ।
हिन्दी में अनुवाद : उमेश कुमार सिंह चौहान