भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम दोनों / मख़दूम मोहिउद्दीन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़दूम मोहिउद्दीन |संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दू…)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:53, 14 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

कुमारी इन्द्रा धनराजगीर जी की नज़्म "Both of us" का मुक्त अनुवाद

रात है, बातें हैं, सरगोशी है
तू है, मैं हूँ
अपने गूँधे हुए ग़म के बंधन
शब के सन्नाटे में
जाग उठते हैं, तड़प जाते हैं, चिल्लाते हैं
दाम-ए अफ़सूँ<ref>जादू के जाल</ref> व तिल्स्मात में फँस जाता है दिल
जिस्म और जान को खा जाता है ग़म
नीशे ग़म<ref>दुख के मद</ref> और दिले ज़ार<ref>टूटे दिल में</ref> में पैकार<ref>लड़ाई</ref> चली जाती है
गर्म-गर्म आँसू ढलक जाते हैं, रुख़सारों पर
ज़िन्दगी यादों का मीनार बना लेती है
जो उड़ाता है जहाँ में अब्दियत<ref>जिसका कोई अंत नहीं</ref> का मज़ाक
देखते-देखते चुपचाप बिखर जाती है तारों भरी रात
चाँद छुप जाता है
रात है, बातें है, सरगोशी है
तू है, मैं हूँ
इन परिन्दों की तरह सरगोशी
जो दबी साँस मे गाते हैं बिछड़ने के लिए
गीत तारों भरी रातों में जिसे हमने बुना ।
धीमी आवाज़ में सरगोशी के अन्दाज़ में गाया हुआ गीत
हाथ थर्राए, जुदाई की घड़ी आ पहुँची
हाथ में ले लिए मैंने तेरे हाथ
ताके इन हाथों को पहचानूँ
उन हाथों से मुहब्बत कर लूँ
जिस्म और जान के रिश्तों के बिख़र जाने तक
जाविदाँ शील-ए जव्वाला<ref>भड़कता हुआ शाश्वत शोला</ref> की इक चिंगारी
मैंने ले ली है तेरे होंटों से
मैं जहाँ भी रहूँ जिस जा भी रहूँ
अपनी आँखें तो उफ़क़ज़ारों<ref>क्षितिज पर रहने वाले</ref> में मिलती ही रहेंगी कहीं दूर
और दिल चुपके से मिल जाएँगे दिल ही दिल में
मेरे सैलाब-ए तखय्युल<ref>कल्पनाओं का सैलाब</ref> में तेरी याद ऐ दोस्त
इस तरह तैरेगी
सुबह दम तैरता फिरता है किसी झील में जैसे कोई हंस
इन हवाओं में तेरे गीत
वो बिखरे हुए गीत
गूँज उट्ठेंगे मेरे कानों में
मेरे हमदम
मेरे दोस्त ।

शब्दार्थ
<references/>