भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चांद-सा मुखड़ा क्यों शरमाया / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} {{KKCatGeet}} <poem> सितारो, हमें न निहारो, हमारी…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:48, 15 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
सितारो, हमें न निहारो, हमारी यह प्रीत नई
चाँद-सा मुखड़ा क्यों शरमाया, आँख मिली और दिल घबराया ।
झुक गए चंचल नैना, इक झलकी दिखलाके
बोलो गोरी क्या रखा है, पलकों में छुपाके
तुझको रे साँवरिया, तुझ से ही चुराके
नैनों में सजाया मैंने कजरा बनाके
नींद चुराई तूने, दिल भी चुराया, चाँद-सा मुखड़ा क्यों शरमाया ।
ये भीगे नज़ारे, करते हैं इशारे
मिलने की ये रुत है गोरी, गिन हैं हमारे
सुन लो पिया प्यारे, क्या कहते हैं तारे
हमने तो बुछड़ते देखे, कितनों के प्यारे
कभी न अलग हुई काया से काया, चाँद-सा मुखड़ा क्यों शरमाया ।
फ़िल्म : इंसान जाग उठा-1959