भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जेल में याद / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अरूण कमल
+
|रचनाकार=अरुण कमल
 +
|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 +
  
  

18:33, 19 मई 2008 का अवतरण



बहुत याद आ रही है

बहुत सारे लोग बहुत सारी चीज़ें कई बातें

कड़ी धूप की तरह आँख पर गड़ रही हैं आज

पता नहीं क्यों

पता नहीं क्यों मुझे ऎसे लोग याद आ रहे हैं

जिनसे कभी कोई ख़ास वास्ता भी नहीं रहा

और कुछ ऎसी बातें

जिनके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं

गहरे कुएँ का जल अचानक

हिल रहा है

घने अन्धकार में चमक रहा है जल

आज पता नहीं क्यों


मुझे बार-बार अपने बच्चे की याद आ रही है

बार-बार घूम जा रहा है उसी का चेहरा

जैसे कि मैं कोई

आईना होऊँ

और वह बिल्कुल नाक सटाए ताक रहा हो मुझ में

आँख पर रखता आँख


पर मैं उसे छू नहीं पाऊँगा

तप्त खपड़ी में फूटते चने-सा तड़पता रह जाऊँगा

आज मैं सो नहीं पाऊँगा