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"भूलवश और जान-बूझकर / नासिर अहमद सिकंदर" के अवतरणों में अंतर

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कुछ चीज़ें छूटतीं हमसे
 
कुछ चीज़ें छूटतीं हमसे

11:03, 21 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

कुछ चीज़ें छूटतीं हमसे
भूलवश
कुछ छोड़ते जान-बूझकर

छाता, स्वेटर, रूमाल, चश्मा, किताब
चाबियाँ, कंघी, पैन
और भी कई चीज़ें
छूटतीं भूलवश
माचिस की खाली डिब्बी
पैकेट सिगरेट खाली
या आज का ही अख़बार आदि
छोड़ते हम
जान-बूझकर

समय-सारिणी देखे बग़ैर
ट्रेन छूटती भूलवश
और ठसाठस भरी बस देखकर
छोड़ते भी हम
उसे जान-बूझकर

इस तरह
जीवन जीते हुए उसकी प्रक्रिया से बाहर
काव्य-प्रक्रिया में
समय छूटता भूलवश
एक नवोदित कवि से

और एक पुरस्कृत कवि
समय छोड़ता
जान-बूझकर।