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"क्रूरता / ब्रज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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भावना की सहजता पर
 
भावना की सहजता पर

11:16, 21 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

भावना की सहजता पर
मारती है ठहाका

अपना शिकार मानती है मन ही मन
खिलने देती है उसे भरपूर
और जब वह करती है
कुछ मासूम-सी अपेक्षाएँ
गला मसक देती है धोखे से
गहरा सन्तोष महसूस करती है
मनाती है एक और जश्न

जाँच करती है लाश की भी
मारकर धीरे-धीरे लाठी
मुत्तमईन होती है कि हाँ
अब पूरी तरह मर चुकी है भावना

सो जाती है तब क्रूरता
चैन की नीद से।