भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपना नहीं कोई है / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है। <br><br> | हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है। <br><br> | ||
− | + | गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,<br> | |
प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।<br><br> | प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।<br><br> | ||
− | + | बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,<br> | |
बरसी है जब उमड कर सतरंग हुई हुई है।<br><br> | बरसी है जब उमड कर सतरंग हुई हुई है।<br><br> | ||
− | + | चन्दा की चांदनी सी,तारों की झिलमिली सी,<br> | |
उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है। <br><br> | उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है। <br><br> | ||
− | + | बाहों में प्रिय के आके हर दर्द भूल जाती,<br> | |
दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।<br><br> | दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।<br><br> | ||
− | + | इक बूंद के लिए ही बनती है वो दीवानी,<br> | |
इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।<br><br> | इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।<br><br> |
10:06, 14 जून 2007 का अवतरण
सूना है मन का अंगना ,अपना नहीं कोई है,
हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है।
गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,
प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।
बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,
बरसी है जब उमड कर सतरंग हुई हुई है।
चन्दा की चांदनी सी,तारों की झिलमिली सी,
उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है।
बाहों में प्रिय के आके हर दर्द भूल जाती,
दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।
इक बूंद के लिए ही बनती है वो दीवानी,
इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।