भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तोड़े नयी जमीन/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान }} {{KKCatNavgeet}} <poem> '''तोड़े न…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान | + | |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान |
+ | |संग्रह=तपती रेती प्यासे शंख / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान | ||
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
आओ हम सब मिल आपस में | आओ हम सब मिल आपस में | ||
एक करें यह काम, | एक करें यह काम, | ||
अंधियारे के माथे पर लिख दें | अंधियारे के माथे पर लिख दें | ||
सूरज का नाम | सूरज का नाम | ||
− | तोड़े नयी | + | |
+ | तोड़े नयी ज़मीन न ऊसर | ||
बंजर एक बचे, | बंजर एक बचे, | ||
− | प्रगति | + | प्रगति वधू अपने हाथों में |
− | मेंहदी | + | मेंहदी रोज़ रचे, |
कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में | कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में | ||
− | आहुति दे | + | आहुति दे अविराम । |
+ | |||
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर | तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर | ||
− | सबकी प्यास | + | सबकी प्यास हरें । |
− | द्वेष, | + | द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का |
− | दिन दिन हृास | + | दिन-दिन हृास करें । |
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी | धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी | ||
− | सबको कर | + | सबको कर अभिराम । |
+ | |||
जोड़े सकल समाज हृदय में | जोड़े सकल समाज हृदय में | ||
सबके प्रेम जगे, | सबके प्रेम जगे, | ||
कोमल दूब उगे, | कोमल दूब उगे, | ||
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर | दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर | ||
− | अपनी कसें | + | अपनी कसें लगाम । |
अंधियारे के माथे पर लिख दें | अंधियारे के माथे पर लिख दें | ||
− | सूरज का | + | सूरज का नाम । |
</poem> | </poem> |
01:45, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण
आओ हम सब मिल आपस में
एक करें यह काम,
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम
तोड़े नयी ज़मीन न ऊसर
बंजर एक बचे,
प्रगति वधू अपने हाथों में
मेंहदी रोज़ रचे,
कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में
आहुति दे अविराम ।
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर
सबकी प्यास हरें ।
द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का
दिन-दिन हृास करें ।
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी
सबको कर अभिराम ।
जोड़े सकल समाज हृदय में
सबके प्रेम जगे,
कोमल दूब उगे,
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर
अपनी कसें लगाम ।
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम ।