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"औरत / जमील मज़हरी" के अवतरणों में अंतर

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12:57, 1 मार्च 2011 का अवतरण

है तेरे जल्वा-ए-रंगी<ref>सौन्दर्य आभा से</ref> से उजाली दुनिया
तुझसे आबाद है शाइर की ख़याली दुनिया

नग़्म:-ए-रूहे अमल<ref>सदाचारी प्राणों का संगीत</ref>, बू-ए-गुलिस्तान-ए-हयात<ref>जीवन-वाटिका की सुगंध</ref>
गर्मि-ए-बज़्मे जहाँ<ref>संसर के उत्सव की शोभा</ref> शमः-ए-शबिस्तान-ए-हयात<ref>जीवन-प्रासाद का दीपक, शमा</ref>

तू है मासूम, तिरी सारी अदाएँ मासूम
इन्तहा ये है कि होती है ख़ताएँ मासूम

हुस्न किरदार निहाँ<ref>गुप्त सदाचार ही तेरा रूप है</ref> हुस्न तबीयत में<ref>सौन्दर्य-सुरुचि तेरे स्वभाव में है</ref> तेरे
मय-ए-सर जोश-ओ-वफ़ा शीशः-ए-इस्मत<ref>नेकी और भलाई की उमंग रूपी मदिरा ही तेरे शील रूपी पात्र में है</ref> में तेरे

अपने हाथों से ख़ुदा ने है बनाया तुझको
हम कहेंगे दिल-ए-फ़ितरत की तमन्ना तुझको

माहे-कामिल<ref>पूर्णिमा के चन्द्र से</ref> से तड़प, बर्क़ से<ref>बिजली से</ref> ग़ैरत माँगी
सीनः-ए-मिहर से<ref>सूर्य के सीने से</ref> थोड़ी-सी हरारत माँगी

रूह फूलों की बनी, जिससे वह ख़ुशबू लेकर
दिल-ए-शाइर के अमानत थे जो आँसू लेकर

गूँधा क़ुदरत ने तिरी शोख़ तबीयत का ख़मीर
और तिरी ख़ाक के ज़र्रों से मुहब्बत का ख़मीर

दहर में मक़सदे-तख़लीक की हामिले है तू
जिसके आगोश में कुलज़म है, वह साहिल है तू

चढ़ के परवान तेरी गोद से इन्साँ निकला
तूने जिस फूल को सींचा वह गुलिस्ताँ निकला

मानि-ए-लफ़्ज़-ए-सकूँ राज-ए-मुहब्बत है तू
है ये मुजमल तेरी तारीफ़ कि औरत है तू

शब्दार्थ
<references/>