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"राजकुमारी-5 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
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प्यार में
एक बार फिसलने के बाद
बहुत संभल-संभल कर
चलती है राजकुमारी
रास्ता लम्बा है
जाने कब, कहाँ होगा पूरा
नहीं जानती राजकुमारी
वह तो बस निकल पड़ी
लाख सोचा चलूँ
संभल-संभल कर
चली भी थी राजकुमारी
अंत में फिर फिसल पड़ी……