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"समझो भी / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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11:47, 5 मार्च 2011 के समय का अवतरण

कई बार लगता है
अकेला पड़ गया हूँ

साथी-संगी विहीन
क्या हाने हनूँगा

तुम्हारे मन के लायक़
मैं कैसे बनूँगा

शक्ति तुमने दी है मगर
साथी तो चाहिए आदमी को

आदमी की इस कमी को समझो
उसके मन की इस नमी को समझो
जो सार्थक नहीं होती बिन साथियों के !