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समुद्र
तुम्हारा साथ पाकर
दिशाएँ अपनी पहचान खो बैठी हैं
यूँ कहता तो नहीं
किंतु फैली इस धुंध में
कहता हूँ कि व्यस्त विस्तार तुम्हारा
असीम है फ़िलवक़्त…
एक कुतूहल
तुम्हारे पार से समुद्र
उगता हुआ देखना चाहता है कुछ….