देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..
(2)
बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बडो दिन दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।1।
निज घरकी बरबात बिलाकहु, हौ तुम परम सयानी।
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी।।
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
तिन रंकनकौ नाक सँवारत, हौं आयो नकबानी।।
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।
यह अधिकार सौंपिये औरहिं, भाीख भली मैं जानी।।
प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत, सुति बिधिकी बर बानी।।
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन, जगतु-मातु मुसकानी।।
</poem>