भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=व…) |
|||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
'''पद 231 से 240 तक''' | '''पद 231 से 240 तक''' | ||
− | + | (235) | |
+ | ऐसेहि जनम-समूह सिराने। | ||
+ | प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।। | ||
+ | जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने। | ||
+ | सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।। | ||
+ | सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने। | ||
+ | सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।। | ||
+ | यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने। | ||
+ | तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।। | ||
</poem> | </poem> |
13:48, 10 मार्च 2011 का अवतरण
पद 231 से 240 तक
(235)
ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।