भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं हूँ मानवी / संध्या नवोदिता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संध्या नवोदिता |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> मैं हूँ समर्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:03, 14 मार्च 2011 के समय का अवतरण

मैं हूँ
समर्पण हैं, समझौते हैं
तुम हो बहुत क़रीब

मैं हूँ
हँसी है, ख़ुशी है
और तुम हो नज़दीक ही

मैं हूँ
दर्द है, आँसू हैं
तुम कहीं नहीं

मैं हूँ मानवी
ओ सभ्य पुरुष !