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− | + | अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर, | |
− | + | तून कटि , मुनिपट लूटक पटनि के।। | |
− | + | नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै, | |
+ | बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।। | ||
− | + | गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै, | |
− | + | साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16। | |
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− | + | तुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग, | |
− | + | नवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।। | |
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+ | तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं, | ||
+ | पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै। | ||
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+ | सब भाँति मनोहर मोहनरूप, | ||
− | + | अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18। | |
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− | + | साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है। | |
− | + | बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।। | |
+ | संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है। | ||
− | + | पायन तौ पनहीं न , पयादेहिं क्यों चलिहैं, सकुचात हियो है।19। | |
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− | + | रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है। | |
− | + | राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।। | |
+ | ऐसी मनेाहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है। | ||
+ | आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं किमि कै बनबासु दियो है।20। | ||
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11:21, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण
सुन्दर बदन , सरसीरूह सुहाए नैन,
मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।
अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर,
तून कटि , मुनिपट लूटक पटनि के।।
नारि सुकुमारि संग, जाके अंग उबटि कै,
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै,
साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।
बलकल-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि,
रूपके निधान घन-दामिनी-बरन हैं।
तुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग,
नवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।।
औरै सो बसंतु, और रति, औरै रतिपति,
मूरति बिलोकें तन-मनके हरन हैं।
तापस बेषै बनाइ पथिक पथें सुहाइ,
चले लोकलोचननि सुफल करन हैं।17।
बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,
बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै।
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।।
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं,
पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै।
सब भाँति मनोहर मोहनरूप,
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।
साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है।
पायन तौ पनहीं न , पयादेहिं क्यों चलिहैं, सकुचात हियो है।19।
रानी मैं जानी अयानी महा, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।
ऐसी मनेाहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं किमि कै बनबासु दियो है।20।