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"कटती फसलों के साथ... / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कटती फसलों के साथ कट गया सन्नाटा
 
कटती फसलों के साथ कट गया सन्नाटा
 
 
बजती फसलों के साथ ब्याह के ढोल बजे
 
बजती फसलों के साथ ब्याह के ढोल बजे
 
 
मेरे माथे पर झुक-झुक आते पीत चन्द्र
 
मेरे माथे पर झुक-झुक आते पीत चन्द्र
 
 
तुम इतने सुन्दर इसके पहले कभी न थे
 
तुम इतने सुन्दर इसके पहले कभी न थे
 
  
 
चांदनी अधिक अलसाई सूनी घड़ियों में
 
चांदनी अधिक अलसाई सूनी घड़ियों में
 
 
बाँसुरी अधिक भरमाई टेढ़ी गलियों में
 
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कितनी उदार हो जाती कनइल की छाया
 
कितनी उदार हो जाती कनइल की छाया
 
 
कितनी बेचैनी है बेले की कलियों में
 
कितनी बेचैनी है बेले की कलियों में
 
  
 
पीले रंगों से जगमग तेरी अंगनाई
 
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पीले पत्तों से भरती मेरी अमराई
 
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पर्वती सरीखी तुम्हें कहूँ या न भी कहूँ
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हर बार प्रतिध्वनि लौट पास मेरे आती
 
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अच्छा ही हुआ कि राहें उलझ गईं मेरी
 
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यदि पास तुम्हारे जाती तो तुम क्या कहते?
 
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पर्वती= संथाल परगना का पर्वत
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00:31, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

कटती फसलों के साथ कट गया सन्नाटा
बजती फसलों के साथ ब्याह के ढोल बजे
मेरे माथे पर झुक-झुक आते पीत चन्द्र
तुम इतने सुन्दर इसके पहले कभी न थे

चांदनी अधिक अलसाई सूनी घड़ियों में
बाँसुरी अधिक भरमाई टेढ़ी गलियों में
कितनी उदार हो जाती कनइल की छाया
कितनी बेचैनी है बेले की कलियों में

पीले रंगों से जगमग तेरी अंगनाई
पीले पत्तों से भरती मेरी अमराई
पर्वती<ref>संथाल परगना का पर्वत</ref> सरीखी तुम्हें कहूँ या न भी कहूँ
हर बार प्रतिध्वनि लौट पास मेरे आती

अच्छा ही हुआ कि राहें उलझ गईं मेरी
यदि पास तुम्हारे जाती तो तुम क्या कहते?

शब्दार्थ
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