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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सिराज फ़ैसल ख़ान]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
 
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घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
+
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है
+
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
 +
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
 +
                मली मुख-चुम्बन-रोली
  
तुमको पत्थर मारेंगे सब रुसवा तुम हो जाओगे
+
प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है
+
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
 +
                      कली-सी काँटे की तोली
  
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई हैं
+
मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है
+
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
 +
                          बनी रति की छवि भोली
  
भारतवासी कुछ दिन से रूखी रोटी खाते हैं
+
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
पानी पीकर जीते हैं महँगी  सब तरकारी है ।
+
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
 
+
                      रही यह एक ठिठोली ।</pre>
जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा-फिरा कर बात करो
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केवल सच्ची बातें करना बहुत बड़ी बीमारी है ।</pre>
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12:38, 20 मार्च 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
  रचनाकार: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
                मली मुख-चुम्बन-रोली ।

प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
                      कली-सी काँटे की तोली ।

मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
                          बनी रति की छवि भोली ।

बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
                      रही यह एक ठिठोली ।