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"होली-16 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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14:57, 20 मार्च 2011 का अवतरण

बजा लो तब्लो तरब<ref>ख़ुशी का ढोल</ref> इस्तमाल होली का ।
हुआ नुमूद<ref>धूमधाम, तड़क-भड़क</ref> में रंगो जमाल<ref>शोभा, सुन्दरता</ref> होली का ।।
भरा सदाओं में, रागो ख़़याल होली का ।
बढ़ा ख़ुशी के चमन में निहाल होली का ।।
अज़ब बहार में आया जमाल होली का ।।१।।

हर तरफ़ से लगे रंगो रूप कुछ सजने ।
चमक के हाथों में कुछ तालियाँ लगी बजने ।।
किया ज़हूर<ref>रौशन, उज्ज्वल</ref> हँसी और ख़ुशी की सजधज ने ।
सितारो ढोलो मृदंग दफ़ लगे बजने ।।
धमक के तबले पै खटके है ताल होली का ।।२।।

जिधर को देखो उधर ऐशो चुहल के खटके ।
हैं भीगे रंग से दस्तारो जाम<ref>पगड़ी और चादर</ref> और पटके ।।
भरे हैं हौज कहीं रंग के कहीं मटके ।
कोई ख़ुशी से खड़ा थिरके और मटके ।।
यह रंग ढंग है रंगी खिसाल<ref>आदत, स्वभाव</ref> होली का ।।३।।

निशातो ऐश<ref>आनंद और सुख</ref> से चलत तमाशे झमकेरे ।
बदन में छिड़कवाँ जोड़े सुनहरे बहुतेरे ।
खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली घेरे ।
पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो मुँह फेरे ।
यह कहके देते हैं झट रंग डाल होली का ।।४।।

ज़रूफ़ बादए गुलरंग से चमकते हैं ।
सुराही उछले है और जाम भी छलकते हैं ।।
नशों के जोश में महबूब भी झमकते हैं ।
इधर अबीर उधर रंग ला छिड़कते हैं ।।
उधर लगाते हैं भर-भर गुलाल होली का ।।५।।

जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते हैं ।
तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते हैं ।।
लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते हैं ।
गुलाल मुँह पे लगा ग़ुलमचा सुनाते हैं ।।
यही है हुक्म अब ऐश इस्तमाल होली का ।।६।।

गुलाल चहरए ख़ूबाँ पै यों झमकता है ।
कि रश्क से गुले-ख़ुर्शीद<ref>सूरजमुखी का फूल</ref> उसको तकता है ।।
उधर अबीर भी अफ़शाँ<ref>वह सुनहरा या रुपहला चूर्ण, जो औरतें बालों पर छिड़कती हैं ।</ref> नमित चमकता है ।
हरेक के ज़ुल्फ़ से रंग इस तरह टपकता है ।।
कि जिससे होता है ख़ुश्क बाल-बाल होली का ।।७।।

कहीं तो रंग छिड़क कर कहें कि होली है ।
कोई ख़ुशी से ललक कर कहें कि होली है ।
अबीर फेंकें हैं तक कर कहें की होली है ।
गुलाल मलके लपक कर कहें कि होली है ।
हरेक तरफ़ से है कुछ इत्तिसाल<ref>मेल-मिलाप</ref> होली का ।।८।।

यह हुस्न होली के रंगीन अदाए मलियाँ हैं ।
जो गालियाँ हैं तो मिश्री की वह भी डलियाँ हैं ।।
चमन हैं कूचाँ सभी सहनो बाग गलियाँ हैं ।
तरब<ref>आनन्द</ref> है ऐश है, चुहलें हैं , रंगरलियाँ हैं ।।
अजब 'नज़ीर' है फ़रखु़न्दा<ref>ख़ुशी का</ref> हाल होली का ।।९।।

शब्दार्थ
<references/>