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"होली-1 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

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03:31, 21 मार्च 2011 का अवतरण

हुआ जो आके निशाँ आश्कार होली का ।
बजा रबाब से मिलकर सितार होली का ।
सुरुद रक़्स हुआ बेशुमार होली का ।
हँसी-ख़ुशी में बढ़ा कारोबार होली का ।
        ज़ुबाँ पे नाम हुआ बार-बार होली का ।।1।।

ख़ुशी की धूम से हर घर में रंग बनवाए ।
गुलाल अबीर के भर-भर के थाल रखवाए ।
नशों के जोश हुए राग-रंग ठहराए ।
झमकते रूप के बन-बन के स्वाँग दिखलाए ।
        हुआ हुजूम अजब हर किनार होली का ।।2।।

गली में कूचे में ग़ुल शोर हो रहे अक्सर ।
छिड़कने रंग लगे यार हर घड़ी भर-भर ।
बदन में भीगे हैं कपड़े, गुलाल चेहरों पर ।
मची यह धूम तो अपने घरों से ख़ुश होकर ।
        तमाशा देखने निकले निगार होली का ।।3।।

बहार छिड़कवाँ कपड़ों की जब नज़र आई ।
हर इश्क़ बाज़ ने दिल की मुराद भर पाई ।
निगाह लड़ाके पुकारा हर एक शैदाई ।
मियाँ ये तुमने जो पोशाक अपनी दिखलाई ।
        ख़ुश आया अब हमें, नक़्शो-निगार होली का ।।4।।

तुम्हारे देख के मुँह पर गुलाल की लाली ।
हमारे दिल को हुई हर तरह की ख़ुशहाली ।
निगाह ने दी, मये गुल रंग की भरी प्याली ।
जो हँस के दो हमें प्यारे तुम इस घड़ी गाली ।
        तो हम भी जानें कि ऐसा है प्यार होली का ।।5।।

जो की है तुमने यह होली की तरफ़ा तैयारी ।
जो हँस के देखो इधर को भी जान यक बारी ।
तुम्हारी आन बहुत हमको लगती है प्यारी ।
लगा दो हाथ से अपने जो एक पिचकारी ।
        तो हम भी देखें बदन पे सिंगार होली का ।।6।।

तुम्हारे मिलने का रखकर हम अपने दिल में ध्यान ।
खड़े हैं आस लगाकर कि देख लें एक आन ।
यह ख़ुशदिल का जो ठहरा है आन कर सामान ।
गले में डाल कर बाहें ख़ुशी से तुम ऐ जान !
        पिन्हाओ हम को भी एकदम यह हार होली का ।।7।।

उधर से रंग लिए आओ तुम इधर से हम ।
गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके ख़ुश हर दम ।
ख़ुशी से बोलें हँसे होली खेल कर बाहम ।
बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की कसम ।
        इसी उम्मीद में था इन्तिज़ार होली का ।।8।।

बुतों की गालियाँ हँस-हँस के कोई सहता है ।
गुलाल पड़ता है कपड़ों से रंग बहता है ।
लगा के ताक कोई मुँह को देख रहता है ।
’नज़ीर’ यार से अपने खड़ा ये कहता है ।
        मज़ा दिखा हमें कुछ तू भी यार होली का ।।9।।

शब्दार्थ
<references/>