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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : एक देश और मरे हुए लोग<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विमलेश त्रिपाठी]]</td>
 
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नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
+
एक मरा हुआ आदमी घर में
जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
+
एक सड़क पर
दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
+
एक बेतहाशा॔ भागता किसी चीज़ की तलाश में
                मली मुख-चुम्बन-रोली ।
+
  
प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
+
एक मरा हुआ लालकिले से घोषणा करता
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
+
कि हम आज़ाद हैं
                      कली-सी काँटे की तोली ।
+
कुछ मरे हुए लोग तालियाँ पीटते
 +
कुछ साथ मिलकर मनाते जश्न
  
मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
+
हद तो तब
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
+
जब एक मरा हुआ संसद में पहुँचा
                          बनी रति की छवि भोली ।
+
और एक दूसरे मरे हुए पर एक ने जूते से किया हमला
  
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
+
एक मरे हुए आदमी ने कई मरे हुए लोगों पर
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
+
एक कविता लिखी
                      रही यह एक ठिठोली ।</pre>
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और एक मरे हुए ने उसे पुरस्कार दिया
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एक देश है जहाँ मरे हुए लोगों की मरे हुए लोगों पर हुकूमत
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जहाँ हर रोज़ होती हज़ार से कई गुना अधिक मौतें
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अरे कोई मुझे उस देश से निकालो
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कोई तो मुझे मरने से बचा लो</pre>
 
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23:38, 21 मार्च 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : एक देश और मरे हुए लोग
  रचनाकार: विमलेश त्रिपाठी
एक मरा हुआ आदमी घर में
एक सड़क पर
एक बेतहाशा॔ भागता किसी चीज़ की तलाश में

एक मरा हुआ लालकिले से घोषणा करता
कि हम आज़ाद हैं
कुछ मरे हुए लोग तालियाँ पीटते
कुछ साथ मिलकर मनाते जश्न

हद तो तब
जब एक मरा हुआ संसद में पहुँचा
और एक दूसरे मरे हुए पर एक ने जूते से किया हमला

एक मरे हुए आदमी ने कई मरे हुए लोगों पर
एक कविता लिखी
और एक मरे हुए ने उसे पुरस्कार दिया
 
एक देश है जहाँ मरे हुए लोगों की मरे हुए लोगों पर हुकूमत
जहाँ हर रोज़ होती हज़ार से कई गुना अधिक मौतें

अरे कोई मुझे उस देश से निकालो
कोई तो मुझे मरने से बचा लो