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22:22, 25 मार्च 2011 के समय का अवतरण
एक सपना दिए का जिएँ
हम अँधेरा समय का पिएँ
दीप बालो, हृदय में धरो!
हर दिशा में, उजाला करो!
दीप की बात इतनी सुनो;
रोशनी के दुशाले बुनो;
एक पल के लिए ही सही-
दिन गिनो, रात को भी गुनो;
ज़िंदगी के अंधेरे हरो!
हर दिशा में उजाला करो!
दीप बालो, हृदय में धरो!
ज्योति अपनी कथाएँ कहे;
वह किसी रूप में भी रहे;
रोशनी का यही धर्म है-
हर गली, गाँव-घर में बहे;
दीप के पर्व इतना करो!
आज घर-घर उजाला भरो!
दीप बोलो, हृदय में धरो!
दीप ने गीत ऐसा लिखा;
वह मिला तो सभी कुछ दिखा;
भूमिका दीप की है कठिन
तुम करो तो सही एक दिन
बस यही भूमिकाएँ करो!
हर दिशा में उजाला करो!
दीप बालो, हृदय में धरो!