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"उलझन / मिथिलेश श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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02:29, 27 मार्च 2011 का अवतरण

बचपन से सुनते आए हैं हम
पिता के पुरोहित से
पिता मरणासन्न होते और वह कहता लंबी है आपकी आयु रेखा
हम भूख से बिलबिलाते और वह कहता
पिता के हाथ से एक घर बनेगा
एक कुआँ खुदेगा
पचास के बाद सब कुछ बदल जाएगा

मेरी हथेली में कितनी साफ़ और सीधी रेखाएँ हैं
और कितनी उलझन मेरे जीवन में
एक उलझन यही कि कोई पुरोहित
नहीं मेरे जीवन में