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"वसंत / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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01:47, 28 मार्च 2011 का अवतरण

वसंत आ रहा है
जैसे माँण की सूखी छातियों में
आ रहा हो दूध

माघ की एक उदास दोपहरी में
गेंदे के फूल की हँसी-सा
वसंत आ रहा है

वसंत का आना
तुम्हारी आँखों में
धान की सुनहली उजास का
फैल जाना है

काँस के फूलों से भरे
हमारे सपनों के जंगल में
रंगीन चिड़ियों का लौट जाना है
वसंत का आना

वसंत हँसेगा
गाँव की हर खपरैल पर
लौकियों से लदी बेल की तरह
और गोबर से लीपे
हमारे घरों की महक बनकर उठेगा

वसंत यानी बरसों बाद मिले
एक प्यारे दोस्त की धौल
हमारी पीठ पर

वसंत यानी एक अदद दाना
हर पक्षी की चोंच में दबा
वे इसे ले जाएँगे
हमसे भी बहुत पहले
दुनिया के दूसरे कोने तक ।