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22:55, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

पहले पहल जब हमने सुना
चमड़े का वॉशर है
तो बरसों बरस नल का पानी नहीं पिया
 
तब कुओं-बावडि़यों पर हमारा कब्ज़ा था
जो आख़िर तक बना रहा
 
हमने कुएँ सुखा दिए
पर ऐरों-गैरों को फटकने न दिया
अब भी कायनात में पीने योग्य
जितना पानी बचा है
दलितों की बस्ती की ओर रूख करे इससे पहले
हमीं खींच लेते हैं
 
हमारे विकास ने जो ज़हर छोड़ा
ज़मीन की तहों में बस गया है
 
बजबजाते हुए हमारे विशाल पतनाले
हमारी विष्ठा हमारा कूड़ा और हमारा मैल लिए
सभ्यता की बसावट से गुजरते हैं
और नदियों में गिरते हैं
जिन्होने बहना बंद कर दिया है
 
कितना महान सांस्कृतिक दृश्य है कि
हत्याकांड सम्पन्न करने के बाद हत्यारा भीड़ भरे
घाट पर आता है
और संस्कृत में धारावाहिक स्तोत्र बोलता हुआ
रूकी हुई यमुना के रासायनिक ज़हर में
सौ मन दूध गिराता है