भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाद्रपद-1 / राम मेश्राम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम मेश्राम |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}}‎ <poem> पल की-छिन की लगी…)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:58, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

पल की-छिन की लगी
रात-दिन की लगी ।

क्या सुबह, शाम क्या,
बिजलियों की तसलसुल की गिनती लगी
हाय भादों की झड़ पूरे मन की लगी ।

भीगती हर ज़मीं, भीगता हर गगन,
भीगने की हर-इक शै को लागी लगन,

भीगने के लिए खोल दे तन-बदन,
मेघ नाचे गज़ब रात-दिन, धा-धा धिन

मूसलाधार-सी आह किनकी लगी ।

बात उनकी लगी
घात जिनकी लगी

पल की-छिन की लगी
रात-दिन की लगी ।