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"अछूत का इनार-4 / मुसाफ़िर बैठा" के अवतरणों में अंतर

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00:44, 3 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

अभी दादी की परिपक्व उम्र में पहुंची मां
कहा करतीं हैं कि
दादी के इनार की बरकत के कल्पित किस्से
इस कदर फैले गांव जवार में
कि इस पानी के
रोगहर प्रताप के लाभ लोभ में
गांव के दूर दराज टोले
यहां तक कि
आस परोस के गांव कस्बों से भी
खिंचे चले आते थे लोगबाग
घेघा रोग चर्मरोग और
और बहुत सी उदर व्याधियों का
सहज चामत्कारिक इलाज पाने को

संभव है
वह आज की तरह का
सर्वभक्षी मीडिया संक्रामक युग होता
तो दादी के इस प्रतापी इनार के
सच और दादी के यश से बेसी
जनकल्पित गढ़त किस्से ही
अंधप्रसाद भोगियों के दिल दिमाग पर
खूब खूब मादकतापूर्वक
दिनों तक राज करते होते