भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उसे क्या कहूँ / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार | |रचनाकार=दुष्यंत कुमार | ||
− | |संग्रह=सूर्य का स्वागत / | + | |संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | किन्तु जो तिमिर-पान | ||
+ | औ' ज्योति-दान | ||
+ | करता करता बह गया | ||
+ | उसे क्या कहूँ | ||
+ | कि वह सस्पन्द नहीं था ? | ||
− | + | और जो मन की मूक कराह | |
− | + | ज़ख़्म की आ | |
− | करता करता | + | कठिन निर्वाह |
− | उसे क्या कहूँ | + | व्यक्त करता करता रह गया |
− | + | उसे क्या कहूँ | |
+ | गीत का छन्द नहीं था ? | ||
− | + | पगों कि संज्ञा में है | |
− | + | गति का दृढ़ आभास, | |
− | + | किन्तु जो कभी नहीं चल सका | |
− | + | दीप सा कभी नहीं जल सका | |
− | + | कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया | |
− | + | उसे क्या कहूँ | |
− | + | जेल में बन्द नहीं था ? | |
− | पगों कि संज्ञा में है | + | </poem> |
− | गति का दृढ़ आभास, | + | |
− | किन्तु जो कभी नहीं चल सका | + | |
− | दीप सा कभी नहीं जल सका | + | |
− | कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया | + | |
− | उसे क्या कहूँ | + | |
− | जेल में बन्द नहीं था?< | + |
11:05, 4 अप्रैल 2011 का अवतरण
किन्तु जो तिमिर-पान
औ' ज्योति-दान
करता करता बह गया
उसे क्या कहूँ
कि वह सस्पन्द नहीं था ?
और जो मन की मूक कराह
ज़ख़्म की आ
कठिन निर्वाह
व्यक्त करता करता रह गया
उसे क्या कहूँ
गीत का छन्द नहीं था ?
पगों कि संज्ञा में है
गति का दृढ़ आभास,
किन्तु जो कभी नहीं चल सका
दीप सा कभी नहीं जल सका
कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया
उसे क्या कहूँ
जेल में बन्द नहीं था ?