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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 11 से 20 तक'''
 
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छेव, देव, भीषणाकार, भैरव , भयंकर, भूत प्रेत- प्रमथषिपति, विपति-हर्ता।
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मोह -मूषक-माजार, संसार-भय-हरण, तारण -तरण, अभयकर्ता।1।
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अतुल बल, विपुल विस्तार, विग्रह गौर, अमल अति धवल धरंणीधराभं।
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शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल-शट-कोटि-विद्युच्छटाभं।2।
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भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं।
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ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर, नौमि हर धनद-मित्रं।3।
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इंदु पावक भानु नयन मर्दन-मयन , गुण-अयन, ज्ञान-विज्ञान-रूपं।
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रमण-गिरिजा, भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल, वदनछवि अनूपं।4। 
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चर्म असि शूल धर डमरू शर चाप कर यान वृषभेश करूणा-निधानं।
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जरत सुर असुर नरलोक शोकाकुलं मृदुल चित अजित कृत गरलपानं।5।
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भस्म तनु भूषणं व्याघ्र चर्माम्बरं उगर नर मौलि उरमालधारी।।
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डाकिनी शाकिनी खेचरं भूचरं  यत्रं मंत्र भंजन , प्रबल कल्पमषारी। 6।
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काल अतिकाल कलिकाल व्यालादि खग त्रिपुर मर्दन भीम कर्म भारी।
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सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी।7।
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पाप संताप घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता।
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पाहि भैरव रूप राम रूपी रूद्र बंधु गुरू जनक जननी विधाता।8।
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यस्य गुण गण गणपति विमल मति शारदा निगम नारद प्रमुख ब्रह्मचारी।
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शेष सर्वेश आसीन आसवंदन, दास तुलसी प्रणत-त्रासहारी।9।।
  
 
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शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।  
 
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।  
 
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।  
 
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।  
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कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।  
 
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।  
 
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।  
 
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।  
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ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।  
 
ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।  
 
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।  
 
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।  
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लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।  
 
लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।  
 
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।
 
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।
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  तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।  
 
  तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।  
 
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।
 
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।
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स्ेावहु सिव-चरन-सरोज-रेनु।
 
स्ेावहु सिव-चरन-सरोज-रेनु।
 
  कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।  
 
  कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।  
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कर्पूर-गौर, करूना-उदार।  
 
कर्पूर-गौर, करूना-उदार।  
 
संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।  
 
संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।  
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सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार।  
 
सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार।  
 
निर्गुन, गुननायक, निराकार।।  
 
निर्गुन, गुननायक, निराकार।।  
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त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस।  
 
त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस।  
 
अहँकार-निहार-उदित दिनेस।।  
 
अहँकार-निहार-उदित दिनेस।।  
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बर बाल निसाकर मौलि भ्राज।  
 
बर बाल निसाकर मौलि भ्राज।  
 
त्रैलोक-सोकहर प्रमभराज।।  
 
त्रैलोक-सोकहर प्रमभराज।।  
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जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल।  
 
जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल।  
 
तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।  
 
तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।  
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उपकारी कोऽपर हर-समान।  
 
उपकारी कोऽपर हर-समान।  
 
सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।  
 
सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।  
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बहु कल्प उपायन करि अनेक।  
 
बहु कल्प उपायन करि अनेक।  
 
बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।  
 
बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।  
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बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।  
 
बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।  
 
कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
 
कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
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देखो देखो  बन बन्यो आजु उमाकांत।
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मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत।1।
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जनु तनुदुति चंपक कुसुम माल।
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बर बसन नील नूतन तमाल।2।
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कलकदलि जंघ, पद कमल लाल।
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सूचत कटि केहरि गति मराल।3।
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भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग।
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नूपुर किंकिनि कलरव बिहंग।4।
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कर नवल बकुल पल्लव रसाल।
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श्रीफल कुच कंचुकिलता जाल।5।
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आनन सरोज, कच मधुप गुंज।
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लोचन बिसाल नव नील कंज।6।
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पिक बचन चरित बर बर्हि कीर।
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सित सुमन हास लीला समीर।7।
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कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान।
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उर बसि प्रपंच रचे पंचबान।8।
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करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम।
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जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम।9।
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(15)
 
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दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
 
दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
 
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।
 
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।
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तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
 
तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
 
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
 
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
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रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
 
रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
 
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
 
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
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चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
 
चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
 
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
 
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
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निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
 
निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
 
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
 
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
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छीन, जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,  
 
छीन, जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,  
 
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका।  
 
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका।  
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मंगल-मुद-सिद्वि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,  
 
मंगल-मुद-सिद्वि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,  
 
ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमालिका।।  
 
ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमालिका।।  
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वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल -धनुषबाण,  
 
वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल -धनुषबाण,  
 
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका।  
 
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका।  
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पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,  
 
पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,  
 
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।।  
 
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।।  
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जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,  
 
जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,  
 
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका।  
 
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका।  
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रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,  
 
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,  
 
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।
 
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।
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जय जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,
 
जय जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,
 
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।
 
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।
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बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
 
बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
 
त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1।
 
त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1।
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बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
 
बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
 
भँवर बर, बिभंगतर तरंग-मालिका।
 
भँवर बर, बिभंगतर तरंग-मालिका।
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पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,
 
पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,
 
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।2।
 
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।2।
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थ्नज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पतंग,
 
थ्नज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पतंग,
 
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
 
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
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तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुवंस-बीर,  
 
तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुवंस-बीर,  
 
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।
 
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।
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जयति जय सुरसरी जगदखिल पावनी।
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विष्णु पदकंज मकरंद अम्बुवर वहसि, दुख दहसि, अघवृन्द-विद्राविनी।1।
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मिलित जलपात्र अज युक्त हरिचरणरज, विरज वर वारि त्रिपुरारि ंिशर धामिनी।
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जह्नु कन्या धन्य , पुण्यकृत सगर -सुत, भूधरद्रोणि-विद्दरणि, बहुनामिनी।2।
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यक्ष , गंधर्व, मुनि , किन्नरोरग,जनुज,मनुज मज्जहिं सुकृत -पुंज युत-कामिनी।।
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स्वर्ग -सोपान, विज्ञान-ज्ञानप्रदे,  मोह मद मदन पाथोज हिमयामिनी।3।
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हरित गंभीर वानीर दुहुँ तीरवर, मध्य धारा विशद, विश्व अभिरामिनी।
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नील-पर्यक-कृत -शयन सर्पेश जनु, सहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी।4।
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अमित-महिमा अमितरूप, भूपावली-मुकुट-मनिवंद्य त्रैलोक पथगामिनी।
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देहि रघुबीर -पद-प्रीति निर्भर मातु,  दासतुलसी त्रासहरणि त्रासहरणि भवभामिनी।5।
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छीन
  
 
(19)
 
(19)
पंक्ति 95: पंक्ति 197:
 
श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।  
 
श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।  
 
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।  
 
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।  
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सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।  
 
सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।  
 
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।।  
 
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।।  
 +
 
तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित?  
 
तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित?  
 
घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।।
 
घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।।
पंक्ति 104: पंक्ति 208:
 
श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।  
 
श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।  
 
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।  
 
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।  
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देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि।  
 
देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि।  
 
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।  
 
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।  
 +
 
महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।  
 
महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।  
 
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।
 
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।
 
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20:45, 5 अप्रैल 2011 का अवतरण

पद 11 से 20 तक

(11),

छेव, देव, भीषणाकार, भैरव , भयंकर, भूत प्रेत- प्रमथषिपति, विपति-हर्ता।
 मोह -मूषक-माजार, संसार-भय-हरण, तारण -तरण, अभयकर्ता।1।

अतुल बल, विपुल विस्तार, विग्रह गौर, अमल अति धवल धरंणीधराभं।
शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल-शट-कोटि-विद्युच्छटाभं।2।

 भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं।
ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर, नौमि हर धनद-मित्रं।3।
 
इंदु पावक भानु नयन मर्दन-मयन , गुण-अयन, ज्ञान-विज्ञान-रूपं।
रमण-गिरिजा, भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल, वदनछवि अनूपं।4।

चर्म असि शूल धर डमरू शर चाप कर यान वृषभेश करूणा-निधानं।
जरत सुर असुर नरलोक शोकाकुलं मृदुल चित अजित कृत गरलपानं।5।

भस्म तनु भूषणं व्याघ्र चर्माम्बरं उगर नर मौलि उरमालधारी।।
डाकिनी शाकिनी खेचरं भूचरं यत्रं मंत्र भंजन , प्रबल कल्पमषारी। 6।

काल अतिकाल कलिकाल व्यालादि खग त्रिपुर मर्दन भीम कर्म भारी।
 सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी।7।

 पाप संताप घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता।
पाहि भैरव रूप राम रूपी रूद्र बंधु गुरू जनक जननी विधाता।8।

 यस्य गुण गण गणपति विमल मति शारदा निगम नारद प्रमुख ब्रह्मचारी।
शेष सर्वेश आसीन आसवंदन, दास तुलसी प्रणत-त्रासहारी।9।।

(12)
 
सदा -
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।

कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।

ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।

लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।

 तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।

(13)

स्ेावहु सिव-चरन-सरोज-रेनु।
 कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।

कर्पूर-गौर, करूना-उदार।
संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।

सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार।
निर्गुन, गुननायक, निराकार।।

त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस।
अहँकार-निहार-उदित दिनेस।।

बर बाल निसाकर मौलि भ्राज।
त्रैलोक-सोकहर प्रमभराज।।

जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल।
तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।

उपकारी कोऽपर हर-समान।
सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।

बहु कल्प उपायन करि अनेक।
बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।

बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।
कह तुलसिदास मम त्राससमन।।

,(14)
,
देखो देखो बन बन्यो आजु उमाकांत।
मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत।1।

जनु तनुदुति चंपक कुसुम माल।
बर बसन नील नूतन तमाल।2।

कलकदलि जंघ, पद कमल लाल।
सूचत कटि केहरि गति मराल।3।

भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग।
नूपुर किंकिनि कलरव बिहंग।4।

कर नवल बकुल पल्लव रसाल।
श्रीफल कुच कंचुकिलता जाल।5।

 आनन सरोज, कच मधुप गुंज।
लोचन बिसाल नव नील कंज।6।

पिक बचन चरित बर बर्हि कीर।
सित सुमन हास लीला समीर।7।

कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान।
उर बसि प्रपंच रचे पंचबान।8।

करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम।
जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम।9।


(15)

दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।

तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।

रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।

चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।

निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
 
(16)

छीन, जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका।

मंगल-मुद-सिद्वि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमालिका।।

वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल -धनुषबाण,
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका।

पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।।

जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका।

रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।

(17)

जय जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।

बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1।

बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर, बिभंगतर तरंग-मालिका।

पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।2।

थ्नज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पतंग,
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।

तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुवंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।

(18),
जयति जय सुरसरी जगदखिल पावनी।
विष्णु पदकंज मकरंद अम्बुवर वहसि, दुख दहसि, अघवृन्द-विद्राविनी।1।

मिलित जलपात्र अज युक्त हरिचरणरज, विरज वर वारि त्रिपुरारि ंिशर धामिनी।
जह्नु कन्या धन्य , पुण्यकृत सगर -सुत, भूधरद्रोणि-विद्दरणि, बहुनामिनी।2।

यक्ष , गंधर्व, मुनि , किन्नरोरग,जनुज,मनुज मज्जहिं सुकृत -पुंज युत-कामिनी।।
स्वर्ग -सोपान, विज्ञान-ज्ञानप्रदे, मोह मद मदन पाथोज हिमयामिनी।3।

हरित गंभीर वानीर दुहुँ तीरवर, मध्य धारा विशद, विश्व अभिरामिनी।
नील-पर्यक-कृत -शयन सर्पेश जनु, सहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी।4।

 अमित-महिमा अमितरूप, भूपावली-मुकुट-मनिवंद्य त्रैलोक पथगामिनी।
देहि रघुबीर -पद-प्रीति निर्भर मातु, दासतुलसी त्रासहरणि त्रासहरणि भवभामिनी।5।
छीन

(19)

श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।

सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।
बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।।

तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित?
घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।।

(20)

श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।

देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि।
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।

महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।