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"जीता जीवन-हारी मौत / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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01:54, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अब एक हो गया है
बूँदों में बिखरा हुआ भारत
बल का सागर
अब प्रबल हो गया है
खुल गई हैं तहें
खुलती जा रही हैं राहें
एक-के-बाद एक;
जय का ज्वार
आ गया है पानी में
मौत की आ गई है मौत
जीवन का साथ दे रहा है शौर्य
जीता जीवन
हारी मौत
रचनाकाल: १८-०९-१९६५