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"बुड्ढ़े की मृत्यु / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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बुड्ढ़ा मर गया<br>
 
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और मरते दम तक उसे यह शर्म रही<br>
 
और मरते दम तक उसे यह शर्म रही<br>

01:57, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

बुड्ढ़ा मर गया
और मरते दम तक उसे यह शर्म रही
कि वह पैरगाड़ी पे उचक कर नहीं चढ़ पाया
जिन्दगी में बाएँ जूते को पिछले पहिये की कीली पर जमा
हाथों से हैंडिल थाम
कईं पैंगे मारता था
और जब साइकिल चल पड़ती थी
तो गद्दी पर तैर कर बैठ जाता था
जैसे कोई देवदूत घाटियों से उठा और मेघों से होकर
पहाड़ों में जा पहुँचा।