भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मनगत रै कैनवास माथै / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>आ रे साथी थनैं दिखाऊं मनगत रो संसार, जूण-जूझ सूं कळकळीजती जिंदग…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>आ रे साथी | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार= रवि पुरोहित | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | ||
+ | {{KKCatKavita}}<poem>आ रे साथी | ||
थनैं दिखाऊं | थनैं दिखाऊं | ||
मनगत रो संसार, | मनगत रो संसार, |
05:15, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
आ रे साथी
थनैं दिखाऊं
मनगत रो संसार,
जूण-जूझ सूं कळकळीजती
जिंदगाणी रो सार !
घालमेल जीवन रंगां में
धोळा मांडूं काळा दिखै,
हेत-नेह रै मारग बगतां
पग-पग मिनखपणौ अबै बिकै ।
अरथ लीलग्यो अपणायत नैं
रिस्ता जाणैं हुयो बौपार
मुंहडै आगै हेताळु जग
मांय-मांय ई जङ बाढै
लारै भूंड-चाळीसा बांचै
सैंमुहडै बत्तीसी काढै ।
जीवन रंग अजब है साथी
घणो तङफावै मांयली मार !
अपणायत री कोमळ धरती
बीज आम रो बोऊं,
तळतळीजूं नफरत लपटां
भळै कोई नैं खोऊं
लोक रै अखबारां बिरवो
आकङो बण ज्यावै,
साथी म्हारा बखत देख थूं
कूङ साच नैं खावै !
किण नैं देऊं दोस बैलीङा
जीवन अपरम्पार,
जूण जूझ सूं कळकळीजती
जिंदगाणी रो सार ।