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"ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है / ज़िया फ़तेहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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:ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है |
 
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:फ़ितरत ए ग़म ही मुस्करा दी है |
 
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:हम ने छेड़ा है जब भी साज़ ए जुनूँ
 
:हम ने छेड़ा है जब भी साज़ ए जुनूँ
 
:तीरगी शब की गुनगुना दी है |
 
:तीरगी शब की गुनगुना दी है |
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:आलम ए वज्द ओ बेख़ुदी में तुझे  
 
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:हम ने आवाज़ बारहा दी है |  
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:ऐ ज़मीं हम ने तेरे क़दमों पर  
 
:ऐ ज़मीं हम ने तेरे क़दमों पर  
 
:आसमाँ की जबीं झुका दी है |
 
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:हम ने तूफ़ान ए शोर ओ शेवन से  
 
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:किश्ती ए जब्र डगमगा दी है |  
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:कोशिश ए अमन तो बजा है मगर  
 
:कोशिश ए अमन तो बजा है मगर  
:आदमी फ़ितरतन फ़सादी है |  
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:ऐ ख़ुदा तू ने अपने बन्दों को  
 
:ऐ ख़ुदा तू ने अपने बन्दों को  
 
:ज़िन्दगी की कड़ी सज़ा दी है |
 
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:ऐ " ज़िया " क़लब ए इश्क़ परवर में  
 
:ऐ " ज़िया " क़लब ए इश्क़ परवर में  
 
:हुस्न ने आग-सी लगा दी है |
 
:हुस्न ने आग-सी लगा दी है |
 
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12:09, 11 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

ख़ूबसूरत फ़रेब शादी है |
फ़ितरत ए ग़म ही मुस्करा दी है |

हम ने छेड़ा है जब भी साज़ ए जुनूँ
तीरगी शब की गुनगुना दी है |

आलम ए वज्द ओ बेख़ुदी में तुझे
हम ने आवाज़ बारहा दी है |
 
ऐ ज़मीं हम ने तेरे क़दमों पर
आसमाँ की जबीं झुका दी है |

हम ने तूफ़ान ए शोर ओ शेवन से
किश्ती ए जब्र डगमगा दी है |
 
कोशिश ए अमन तो बजा है मगर
आदमी फ़ितरतन फ़सादी है |
 
ऐ ख़ुदा तू ने अपने बन्दों को
ज़िन्दगी की कड़ी सज़ा दी है |

ऐ " ज़िया " क़लब ए इश्क़ परवर में
हुस्न ने आग-सी लगा दी है |