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13:49, 12 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

बहने लगी दबी धारा
कटान मत देखिए,
इसे पालनेवाली आँखों में झाँकिए
इसकी निर्मलता देखिए,

इसकी छुअन से
सदियों के गडढों में प्यास जाग उठी
अॅंखुआने लगे वहाँ
प्रकृति के बहुतेरे दिखे-अनदिखे बीज
इन्हें उगने दीजिए,

इसके सपने में
हरापन लम्बी-चौड़ी ज़मीन देख रहा है
छुड़ा रहा है सदियों के मन का ऊसर
आप भी छुड़ा लीजिए,

कुछ टीले रुढ़ हो चुके
वे नहीं लगा सकते पवित्र नदी में भी डुबकी
अब वह कट बहेंगे
या नमी के अभाव में हो जाएँगे और भी कँटीले
देखिए, वह आपकी आँखों में
धूल न झोंकें !