भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इस ढलान पर (कविता) / प्रमोद कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अलग-अलग छोटी-छोट…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:38, 13 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अलग-अलग
छोटी-छोटी नावों से
अपने-अपने पार लगने का
समय ख़त्म हो गया,
अब तक के अपने इतिहास में
नदी सबसे तीक्ष्ण ढलान पर फिसल रही है
यहाँ निरर्थक हैं अलग-अलग चप्पू,
असमर्थ हैं अपने-अपने पतवार,
इस हत्यारे ढलान के हाहाकार में
छिन गयी अविरल निर्भयता
लुप्त हुआ
अनन्त में उतरने का कलकल आनन्द,
इस हाहाकार को चुप कराने
हे मल्लाहों !
आओ एक स्वर में गाएँ
जीवन के गीत,
जोड़ लें सभी नावें एक साथ
छोटी कर दें ढलान को ।